Friday, October 24, 2014

Poem by Alok Mishra, Diwali, Poem for Diwali, Satire on the Pomp...

दीवाली चल रही है

दीवाली चल रही है...
खड़ा अँधेरे एक कोने में
सोच रहा वो मानुष|
नभ के सिने को चीरता,
धरती की आँखों को धुंधलाता
आसमान की तरफ वो बढ़ता
गुब्बार धुंए का,
दीवाली चल रही है...

कल के नवजात के सामने
उड़ती चिंगाड़ियाँ,
कर्णफोडू धमाकों में खोती
शिशु की किलकारियां,
दीवाली चल रही है...

युवाओं के तन पे
सजे लाखों के लिवास,
ऊँची ध्वनि में तीव्र संगीत
और आज केपेयजल’!
और बाहर इन्तेजार में सबेरे का
वो वस्त्रहीन बालक, सोचता हुआ
दीवाली चल रही है...

Friday, 24 October 2014

Alok Mishra

Tuesday, September 23, 2014

Hindi Poem by Alok Mishra; Recited on the day of 'Communal Harmony and National Integration' oration day in Nalanda College

की अब देश ने पुकारा है जागो 
ऐ मानुष, इंसानों से दूर न भागो,
हस्ती है इंसान की अपनी
उसे धर्म पे न तोल - 
धर्मं की गरिमा का 
तू क्या जाने मोल - 

धर्म मजहब नहीं सिखाता
मानवता के पथ से हटना,
स्वार्थहीन परमार्थ ही है 
धर्म पथ पर चलना ...

और धर्मं ही कहता है
राष्ट्र हित में भी मरना,
और शहीदों की पहचान भी
तू मजहब से मत करना...

Friday, September 19, 2014

एक समंदर बनाने को ... Hindi poem by Alok Mishra...

एक समंदर बनाने को
बादल कितना रोया होगा,
आंसू इतने बहाने को
उसने क्या खोया होगा?
ताजमहल तो टुटके
एक दिन बिखर ही जायेगा,
पर बादल के इस प्रेम को
कौन मिटा पायेगा?
पर क्या यूँ पिघल जाना
प्यार को अमर कर जाता है?
या टूट टूट कर मन ऐसे में
बस यूँही खो जाता है...

Unthought and Done


Wednesday, 12 February 2014 

Poem written and read by Alok Mishra. 

Nalanda College, Biharsharif

(Proud inhabitant near Nalanda University)

Thursday, September 18, 2014

POEM RECITED BY ALOK MISHRA AT COLLEGE FAREWELL FUNCTION;

आतुर हैं अब परिंदे
नभ में आप उड़ जाने को,
हर पग पे घात लगाए
निषाद के बाणों को छकाने को,
सिखने सिखाने जीने की कला
और त्यागने अपनाने को ...

जीवन की मूल्यों को हमने
इन दीवारों से है जाना,
स्वार्थहीन जीवन को हमने
इन चेहरों में है पहचाना|
अब उन्ही सीखों को
अपने कल में आजमाने को,
आतुर हैं अब परिंदे
नभ में आप उड़ जाने को,
हर पग पे घात लगाए
निषाद के बाणों को छकाने को |

अकेले होंगे हम,
आपका साथ होगा ...
ज्ञान में हमारे मगर
आपके मौजूदगी का एहसास होगा !
एक उम्मीद लेके
जग को जीत जाने को,
आतुर हैं अब परिंदे
नभ में आप उड़ जाने को,
हर पग पे घात लगाए

निषाद के बाणों को छकाने को ...


POEM READ BY ALOK MISHRA ON FAREWELL FUNCTION OF MA ENGLISH STUDENTS, NALANDA COLLEGE BIHARSHARIF.

Monday, July 28, 2014

अधूरापन Hindi Poem by Alok Mishra: Adhurapan poem in Hindi

अधूरापन

ना चाहते भी बढ़ जाते हैं कदम पुरानी राहों पे
जहाँ बस बाकी हैं कुछ तो कदमों के निशान
जो बने थे किसी पुराने इन्सान के गुजरने से...
ना चाहते भी रोक लेता हूँ हथेलियों पे
रेत की कणों को बिखरने से
ताकि कुछ तो बचा रहे जो बस अपना है,
वर्ना क्या है इस ज़माने में?

पूरी ज़िन्दगी ही तो बस एक सपना है... 

Sunday, July 27, 2014

Badlon se upar... Hindi Poem by Alok Mishra बादलों से ऊपर ...

बादलों के ऊपर भी है एक जहान
वहां भी है किसीका आशियाँ
दूर इन ग़मों से संसार के
बसते हैं कुछ लोग वहां...
पूछूं मैं उनसे अगर मिलें वो कभी,
पर हमारी ऐसी तक़दीर कहाँ?
सागर की लहर के जैसे आना
और बस वैसे ही चले जाना
समेटे सारे खुशियों और ग़मों को...

यहीं जमीं पर है हमारा आशियाँ....


Saturday, July 26, 2014

Uljhan: Hindi Poem by Alok Mishra उलझन

उलझन


सँजोऊ इतिहास को.
सवांरू भविष्य को
या फिर देखूं
वर्तमान को जो लेता है
भूखे बीच चौराहे पे
कि शायद फुर्सत हो
किसि सपने को जागने का
अतीत कि अंधी यादों से
या भविष्य कि अँधेरी गलियों से ...

आह! ये वर्तमान तो बेचारा
पिस्ता रहता है कल और कल
कि अमरणशील द्वन्द में!
ना ये अतीत में दुबकी लेगा
ना हि देखेगा भविष्य को|

चंद सपने कल के
चंद यादें कल कि,
जाने कहाँ है अस्तित्व आज का?


Saturday, 17 May 2014

Friday, July 25, 2014

Hindi Poem: जाने अनजाने Jane Anjane by Alok Mishra

जाने अनजाने

बयां किया हमने
और वक्त ने कहानी लिख दी,
आया तूफान सागर कि गहराई में
और लहरों ने रवानी लिख दी,
खोते गए हम दुनिया में बर्बादी के
और नशे ने पूरी जवानी लिख दी...

दो घूंट चढाके अब और तब
काटा दिनों को हमने,
कहा गम भूलना है आशिकी का
और खुदको भुला दिया गम ने!

वो रंग शराब का
धुआं वो नशे में डूबा,
वो लाल सी आँखें जागती सी
जिसने देखा ना था नींद का अजूबा|

आते जाते रहे जिंदगी में आशिकी के मौके,
फिर गम भूलाना तो एक बहाना था
हमें तो वो शराब कि शीशी को ही
सिने से लगाना था...

और आज चलते हैं हम सिकवा लिये
जिंदगी से, कि कभी किसीने ना रोका मुझे|
उतारते रहे जहर हम आगोश में
कि कभी किसी ने ना टोका मुझे...

(हमने कभी मौका ही ना दिया किसीको
अपने करीब आने का,
पर आज गम है हमें
ग़मों के साथ जाने का,
येहमहमें ना समझना
पूरी दुनियाहमहै,
गम तो मिलते बहुत हैं पर
गम में जीना गम है...)
A. M

Sunday, 22 June 2014