Monday, July 28, 2014

अधूरापन Hindi Poem by Alok Mishra: Adhurapan poem in Hindi

अधूरापन

ना चाहते भी बढ़ जाते हैं कदम पुरानी राहों पे
जहाँ बस बाकी हैं कुछ तो कदमों के निशान
जो बने थे किसी पुराने इन्सान के गुजरने से...
ना चाहते भी रोक लेता हूँ हथेलियों पे
रेत की कणों को बिखरने से
ताकि कुछ तो बचा रहे जो बस अपना है,
वर्ना क्या है इस ज़माने में?

पूरी ज़िन्दगी ही तो बस एक सपना है... 

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