Saturday, July 26, 2014

Uljhan: Hindi Poem by Alok Mishra उलझन

उलझन


सँजोऊ इतिहास को.
सवांरू भविष्य को
या फिर देखूं
वर्तमान को जो लेता है
भूखे बीच चौराहे पे
कि शायद फुर्सत हो
किसि सपने को जागने का
अतीत कि अंधी यादों से
या भविष्य कि अँधेरी गलियों से ...

आह! ये वर्तमान तो बेचारा
पिस्ता रहता है कल और कल
कि अमरणशील द्वन्द में!
ना ये अतीत में दुबकी लेगा
ना हि देखेगा भविष्य को|

चंद सपने कल के
चंद यादें कल कि,
जाने कहाँ है अस्तित्व आज का?


Saturday, 17 May 2014

No comments:

Post a Comment