Tuesday, September 23, 2014

Hindi Poem by Alok Mishra; Recited on the day of 'Communal Harmony and National Integration' oration day in Nalanda College

की अब देश ने पुकारा है जागो 
ऐ मानुष, इंसानों से दूर न भागो,
हस्ती है इंसान की अपनी
उसे धर्म पे न तोल - 
धर्मं की गरिमा का 
तू क्या जाने मोल - 

धर्म मजहब नहीं सिखाता
मानवता के पथ से हटना,
स्वार्थहीन परमार्थ ही है 
धर्म पथ पर चलना ...

और धर्मं ही कहता है
राष्ट्र हित में भी मरना,
और शहीदों की पहचान भी
तू मजहब से मत करना...

Friday, September 19, 2014

एक समंदर बनाने को ... Hindi poem by Alok Mishra...

एक समंदर बनाने को
बादल कितना रोया होगा,
आंसू इतने बहाने को
उसने क्या खोया होगा?
ताजमहल तो टुटके
एक दिन बिखर ही जायेगा,
पर बादल के इस प्रेम को
कौन मिटा पायेगा?
पर क्या यूँ पिघल जाना
प्यार को अमर कर जाता है?
या टूट टूट कर मन ऐसे में
बस यूँही खो जाता है...

Unthought and Done


Wednesday, 12 February 2014 

Poem written and read by Alok Mishra. 

Nalanda College, Biharsharif

(Proud inhabitant near Nalanda University)

Thursday, September 18, 2014

POEM RECITED BY ALOK MISHRA AT COLLEGE FAREWELL FUNCTION;

आतुर हैं अब परिंदे
नभ में आप उड़ जाने को,
हर पग पे घात लगाए
निषाद के बाणों को छकाने को,
सिखने सिखाने जीने की कला
और त्यागने अपनाने को ...

जीवन की मूल्यों को हमने
इन दीवारों से है जाना,
स्वार्थहीन जीवन को हमने
इन चेहरों में है पहचाना|
अब उन्ही सीखों को
अपने कल में आजमाने को,
आतुर हैं अब परिंदे
नभ में आप उड़ जाने को,
हर पग पे घात लगाए
निषाद के बाणों को छकाने को |

अकेले होंगे हम,
आपका साथ होगा ...
ज्ञान में हमारे मगर
आपके मौजूदगी का एहसास होगा !
एक उम्मीद लेके
जग को जीत जाने को,
आतुर हैं अब परिंदे
नभ में आप उड़ जाने को,
हर पग पे घात लगाए

निषाद के बाणों को छकाने को ...


POEM READ BY ALOK MISHRA ON FAREWELL FUNCTION OF MA ENGLISH STUDENTS, NALANDA COLLEGE BIHARSHARIF.