Wednesday, July 8, 2015

NO Title for the Untitled Poem... the life... jindagi



अब तो बस सांसें चलती है
ज़िन्दगी जाने क्यूँ खो सी गयी,
दूर वो धुंधला सा ख्वाब नजर आया
जब जब नजरें पीछे मुड़ी

अब बाकि नहीं उम्मीद
नाही वो बेचैनी है,
खवाबों को हकीकत करने की,
अब हिम्मत भी कहाँ बची
बार बार उस खवाब पे मरने की...

पर उलझाने शायद ख़त्म न हो
सामने भी धुंध ही दिखती है,
आशा की किरण कहाँ खोजूं
की अब तो जिंदगी ही जलती बुझती है!

वक्त आ गया शायद
कदम बढाने का
जरा जाकर देखूं ज़िन्दगी कहाँ छिपी है कहीं
खवाबों में |

English text version of the poem

Ab to bas sansen chalti hai
Zindagi jane kyun kho si gayi,
Dur wo dhundhla sa khwab najar aya
Jab jab najaren meri pichhe mudi...

Ab baki nahi ummid
Nahi wo bechaini hai,
Khwabon ko hakikat karne ki,
Ab himmat bhi kahan bachi
Bar bar us khwab pe marne ki...

Par uljhane shayad khatm na ho
Ki samne bhi dhundh hi dikhti hai
Asha ki kiran kahan dhundhun
Ab to sansen hi jalti bujhti hai..

Wakt aa gaya shayad
Kadam badhane ka,
Jara jakar dekhun
Zindagi kahan chhipi hai kahin khwabon me!


Friday, October 24, 2014

Poem by Alok Mishra, Diwali, Poem for Diwali, Satire on the Pomp...

दीवाली चल रही है

दीवाली चल रही है...
खड़ा अँधेरे एक कोने में
सोच रहा वो मानुष|
नभ के सिने को चीरता,
धरती की आँखों को धुंधलाता
आसमान की तरफ वो बढ़ता
गुब्बार धुंए का,
दीवाली चल रही है...

कल के नवजात के सामने
उड़ती चिंगाड़ियाँ,
कर्णफोडू धमाकों में खोती
शिशु की किलकारियां,
दीवाली चल रही है...

युवाओं के तन पे
सजे लाखों के लिवास,
ऊँची ध्वनि में तीव्र संगीत
और आज केपेयजल’!
और बाहर इन्तेजार में सबेरे का
वो वस्त्रहीन बालक, सोचता हुआ
दीवाली चल रही है...

Friday, 24 October 2014

Alok Mishra

Tuesday, September 23, 2014

Hindi Poem by Alok Mishra; Recited on the day of 'Communal Harmony and National Integration' oration day in Nalanda College

की अब देश ने पुकारा है जागो 
ऐ मानुष, इंसानों से दूर न भागो,
हस्ती है इंसान की अपनी
उसे धर्म पे न तोल - 
धर्मं की गरिमा का 
तू क्या जाने मोल - 

धर्म मजहब नहीं सिखाता
मानवता के पथ से हटना,
स्वार्थहीन परमार्थ ही है 
धर्म पथ पर चलना ...

और धर्मं ही कहता है
राष्ट्र हित में भी मरना,
और शहीदों की पहचान भी
तू मजहब से मत करना...

Friday, September 19, 2014

एक समंदर बनाने को ... Hindi poem by Alok Mishra...

एक समंदर बनाने को
बादल कितना रोया होगा,
आंसू इतने बहाने को
उसने क्या खोया होगा?
ताजमहल तो टुटके
एक दिन बिखर ही जायेगा,
पर बादल के इस प्रेम को
कौन मिटा पायेगा?
पर क्या यूँ पिघल जाना
प्यार को अमर कर जाता है?
या टूट टूट कर मन ऐसे में
बस यूँही खो जाता है...

Unthought and Done


Wednesday, 12 February 2014 

Poem written and read by Alok Mishra. 

Nalanda College, Biharsharif

(Proud inhabitant near Nalanda University)

Thursday, September 18, 2014

POEM RECITED BY ALOK MISHRA AT COLLEGE FAREWELL FUNCTION;

आतुर हैं अब परिंदे
नभ में आप उड़ जाने को,
हर पग पे घात लगाए
निषाद के बाणों को छकाने को,
सिखने सिखाने जीने की कला
और त्यागने अपनाने को ...

जीवन की मूल्यों को हमने
इन दीवारों से है जाना,
स्वार्थहीन जीवन को हमने
इन चेहरों में है पहचाना|
अब उन्ही सीखों को
अपने कल में आजमाने को,
आतुर हैं अब परिंदे
नभ में आप उड़ जाने को,
हर पग पे घात लगाए
निषाद के बाणों को छकाने को |

अकेले होंगे हम,
आपका साथ होगा ...
ज्ञान में हमारे मगर
आपके मौजूदगी का एहसास होगा !
एक उम्मीद लेके
जग को जीत जाने को,
आतुर हैं अब परिंदे
नभ में आप उड़ जाने को,
हर पग पे घात लगाए

निषाद के बाणों को छकाने को ...


POEM READ BY ALOK MISHRA ON FAREWELL FUNCTION OF MA ENGLISH STUDENTS, NALANDA COLLEGE BIHARSHARIF.

Monday, July 28, 2014

अधूरापन Hindi Poem by Alok Mishra: Adhurapan poem in Hindi

अधूरापन

ना चाहते भी बढ़ जाते हैं कदम पुरानी राहों पे
जहाँ बस बाकी हैं कुछ तो कदमों के निशान
जो बने थे किसी पुराने इन्सान के गुजरने से...
ना चाहते भी रोक लेता हूँ हथेलियों पे
रेत की कणों को बिखरने से
ताकि कुछ तो बचा रहे जो बस अपना है,
वर्ना क्या है इस ज़माने में?

पूरी ज़िन्दगी ही तो बस एक सपना है... 

Sunday, July 27, 2014

Badlon se upar... Hindi Poem by Alok Mishra बादलों से ऊपर ...

बादलों के ऊपर भी है एक जहान
वहां भी है किसीका आशियाँ
दूर इन ग़मों से संसार के
बसते हैं कुछ लोग वहां...
पूछूं मैं उनसे अगर मिलें वो कभी,
पर हमारी ऐसी तक़दीर कहाँ?
सागर की लहर के जैसे आना
और बस वैसे ही चले जाना
समेटे सारे खुशियों और ग़मों को...

यहीं जमीं पर है हमारा आशियाँ....