आतुर हैं अब परिंदे
नभ में आप उड़ जाने को,
हर पग पे घात लगाए
निषाद के बाणों को छकाने को,
सिखने सिखाने जीने की कला
और त्यागने अपनाने को
...
जीवन की मूल्यों को हमने
इन दीवारों से है जाना,
स्वार्थहीन जीवन को हमने
इन चेहरों में है पहचाना|
अब उन्ही सीखों को
अपने कल में आजमाने को,
आतुर हैं अब परिंदे
नभ में आप उड़ जाने को,
हर पग पे घात लगाए
निषाद के बाणों को छकाने को |
अकेले होंगे हम,
आपका साथ न होगा
...
ज्ञान में हमारे मगर
आपके मौजूदगी का एहसास होगा !
एक उम्मीद लेके
जग को जीत जाने को,
आतुर हैं अब परिंदे
नभ में आप उड़ जाने को,
हर पग पे घात लगाए
निषाद के बाणों को छकाने को
...
POEM READ BY ALOK MISHRA ON FAREWELL FUNCTION OF MA ENGLISH STUDENTS, NALANDA COLLEGE BIHARSHARIF.
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