Friday, September 19, 2014

एक समंदर बनाने को ... Hindi poem by Alok Mishra...

एक समंदर बनाने को
बादल कितना रोया होगा,
आंसू इतने बहाने को
उसने क्या खोया होगा?
ताजमहल तो टुटके
एक दिन बिखर ही जायेगा,
पर बादल के इस प्रेम को
कौन मिटा पायेगा?
पर क्या यूँ पिघल जाना
प्यार को अमर कर जाता है?
या टूट टूट कर मन ऐसे में
बस यूँही खो जाता है...

Unthought and Done


Wednesday, 12 February 2014 

Poem written and read by Alok Mishra. 

Nalanda College, Biharsharif

(Proud inhabitant near Nalanda University)

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