जाने अनजाने
बयां किया हमने
और वक्त ने कहानी लिख दी,
आया तूफान सागर कि गहराई में
और लहरों ने रवानी लिख दी,
खोते गए हम दुनिया में बर्बादी के
और नशे ने पूरी जवानी लिख दी...
दो घूंट चढाके अब और तब
काटा दिनों को हमने,
कहा गम भूलना है आशिकी का
और खुदको भुला दिया गम ने!
वो रंग शराब का
धुआं वो नशे में डूबा,
वो लाल सी आँखें जागती सी
जिसने देखा ना था नींद का अजूबा|
आते जाते रहे जिंदगी में आशिकी के मौके,
फिर गम भूलाना तो एक बहाना था
हमें तो वो शराब कि शीशी को ही
सिने से लगाना था...
और आज चलते हैं हम सिकवा लिये
जिंदगी से, कि कभी किसीने ना रोका मुझे|
उतारते रहे जहर हम आगोश में
कि कभी किसी ने ना टोका मुझे...
(हमने कभी मौका ही ना दिया किसीको
अपने करीब आने का,
पर आज गम है हमें
ग़मों के साथ जाने का,
ये ‘हम’ हमें ना समझना
पूरी दुनिया ‘हम’ है,
गम तो मिलते बहुत हैं पर
गम में जीना गम है...)
A. M
Sunday, 22 June 2014
The First Poem of the site. Please pardon any mistakes.
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