Friday, October 24, 2014

Poem by Alok Mishra, Diwali, Poem for Diwali, Satire on the Pomp...

दीवाली चल रही है

दीवाली चल रही है...
खड़ा अँधेरे एक कोने में
सोच रहा वो मानुष|
नभ के सिने को चीरता,
धरती की आँखों को धुंधलाता
आसमान की तरफ वो बढ़ता
गुब्बार धुंए का,
दीवाली चल रही है...

कल के नवजात के सामने
उड़ती चिंगाड़ियाँ,
कर्णफोडू धमाकों में खोती
शिशु की किलकारियां,
दीवाली चल रही है...

युवाओं के तन पे
सजे लाखों के लिवास,
ऊँची ध्वनि में तीव्र संगीत
और आज केपेयजल’!
और बाहर इन्तेजार में सबेरे का
वो वस्त्रहीन बालक, सोचता हुआ
दीवाली चल रही है...

Friday, 24 October 2014

Alok Mishra

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